Friday 29 March 2019

तक़दीर को मंज़ूर होगी...

उदासी  की  बातें  ये मन   हर  रोज़  करता है
कभी  खामोश  कभी  कभी   ये  दिल रोता है |

पर  खुद से  कभी  मैं  ये  सवाल  नहीं  करता
अपनों  के  बदलने  का  मैं मलाल नहीं करता |

क्यों उम्मीद  लिए बैठा है दिल उस के आने का
खबर तक न हुई  जिसे तुझे से बिछड़ जाने का |

दिल    मेरा    करता   है    मुझ   से  ये  दुहाई
तक़दीर   को    मंज़ूर   होगी   शायद    जुदाई |

पर   नज़रें    चुरा    कर   उनका   यूँ   गुज़रना
मुझे   उसकी  चाहत   से   करता  है   रुसवाई |

लगता  है शायद  मिल  गया  है  उसे मुझसा कोई
या मेरे प्यार की और क़दर अब उससे होने न पाई |

 -साबिर बख़्शी 

तुझे याद करते करते....

दिल  भी  मेरा रो पड़ा है  तुझसे  फर्याद  करते करते
आंसू भी  मेरी  सुख  गयी है  तुझे  याद  करते करते |

दूरी इख़्तियार की तुमने शायद मुझे भुलाने की खातिर
और हमने खुद को मिटा दिया तुम्हे आज़ाद करते करते |

घर का  चराग बुझा दिया तेरा घर  आबाद करते करते
तेरी  ख़ुशी मांगी  है रब  से खुद को  बर्बाद करते करते |

भुला  दिया खुद  को भी इस  क़दर  मैंने  तेरी राहों में
मेरी  दुआए  भी तेरे  घर पहुंची  तुझे  याद करते करते |

-साबिर बख़्शी 

#अधूरी_मोहब्बत

किसी का किसी से  से हर रोज़ एक ही  वक़्त पे बातें करना 
और अचानक से एक दिन किसी एक का ख़ामोश हो जाना |

किसी की खुशियों को गम में तब्दील करने लगती है
किसी को अपनी ज़िन्दगी जन्नत सी लगने लगती है |

कोई  अपनी  ज़िन्दगी में  मशगूल हो  कर रह जाता है
किसी की मशगूल ज़िन्दगी भी तन्हा  गुजरने लगती है |

कोई  उम्र-भर  खुशियाँ  तलाशता ही रह जाता है
किसी को हर मोड़ पर खुशियाँ तलाशने लगती है |

कोई  ता-उम्र  यादों  के  घर  में  कैद  रह जाता है
और  किसी  को  हर  रोज़  यादें  ढूढ़ने  लगती है |

कोई एक लफ्ज़ में सब कुछ कह जाता है 'साबिर'
और किसी को समझने में ज़िन्दगी लगने लगती हैं |

 -साबिर बख़्शी 


  

Friday 8 March 2019

इंसान-ज़ादा हुँ मैं..…..

हाँ - हाँ  वद  से  भी बुरा  हुँ  मैं
फिर भी मुझसा अच्छा कोई नहीं |

गुनाहों के साथ साथ खड़ा हुँ मैं
फिर भी मुझ सा अच्छा कोई नहीं |

नेकी के नाम से अक्सर डरा हुँ मैं
फिर भी मुझ सा अच्छा कोई नहीं |

है खबर गुनाहों से भी बड़ा हुँ मैं
फिर भी मुझ सा अच्छा कोई नहीं |

समझदारी की बात पे लड़ा हुँ मैं
फिर भी मुझ सा अच्छा कोई नहीं |

ग़लत होकर भी ज़िद्द पे अड़ा हुँ मैं
फिर भी मुझ सा अच्छा कोई नहीं |

हज़ारों के भीड़ में भी तन्हा रहा हुँ मैं
फिर भी मुझ सा अच्छा कोई नहीं |

ग़लत पाकर खुदको कई बार मरा हुँ मैं
फिर भी मुझ सा अच्छा कोई नहीं |

गुस्ताख़ी-दर-गुस्ताख़ी कर रहा हुँ मैं
फिर भी मुझ सा अच्छा कोई नहीं |

हाँ हाँ 'साबिर' इंसान-ज़ादा जो हुँ मैं....!!! 


-साबिर बख़्शी 

वादा करके न तोड़ो......

सफर  को  अधूरा न छोड़ो,,
खुद से वादा करके न तोड़ो,,

मुश्किलों का आना तो तय है,,
मेहनत करो  हाथ  न  जोड़ो...

अँधेरी  रातों  से  अब न डरो तुम,,
लिख लो खुद अपनी क़िस्मत तुम,,

तुम  से बने  ये  दुनिया  तुम्हारी,,
दुनिया के रिबाज़ो से न बनो तुम...

-साबिर बख़्शी 

वक़्त थोड़ा अजीब था.....

वो वक़्त भी कितना खुश नसीब था,,
जब तेरा दिल मेरे दिल के क़रीब था..


दूरियां लिखी थी हमारी क़िस्मत में,,
या शायद वो वक़्त थोड़ा अजीब था..


तेरे पास खड़ा वो सेहमा सा लड़का,,
तेरे लिए शायद वो तेरा रक़ीब था...


वाक़िफ़ ना थी शायद तू उसके दिल से,,
उसके लिए तो तुही फज़र तुही मगऱीब था..

-साबिर बख़्शी 

#पहली_मुलाक़ात

निगाहों में थी हया,,
चैहरे पे उनके था नूर..

धड़कने जो मेरी बढ़ने लगी,,
नज़रों का उनके था कुसूर..

हाँ लब थे मेरे खामोश पर,,
दिल में उनके कुछ था ज़रूर..

वहीं थम सा गया वो लम्हा,,
हो न सके हम उनसे दूर...

ख़्वाबों में जीने लगा 'साबिर'
इश्क़ का उनके था सुरूर....!!!

-साबिर बख़्शी 

  

तू कभी मेरी हो न पाई....

सुन अब तो तू हज़ार वादें कर ले  और दे-दे चाहे मुझे लाखो सफाई मगर इतना तो बता ये कैसे भूलूँगा मैं   के फितरत में तेरी शामिल है बेवफाई   मान लि...