Tuesday 16 April 2019

दास्तान-ए-हिज्र (story of separation)

सुन बे-ख़बर तेरी बेवफाई ने मुझको जीना है सिखाया
है मालुम भी तुझे क्या था मैं तूने मुझको क्या है बनाया

रोने भी लगु कभी तो अब आंसू नहीं आती आँखों में
ये सुखी पलके सुबूत है तूने मुझको कितना है रुलाया 

लोग कहते है अब थोड़ा सख्त थोड़ा मगरूर  हो गया हूँ मैं
ये तेरे इश्क़ का सिला है देख तूने मुझको कितना है सताया

अब तो मुस्कुरा कर सुनते है लोग तेरी मोहब्बत के किस्से
मैंने तेरे  हर लफ्ज़  को साकी  प्यार  का नग़मा है बताया 

एक दिन सुनाऊंगा तुम्हे वो सितम जो किया है तूने मुझ पर
बात-बे-बात तेरे हर बदलते रूप को मैंने शब्दों से है सजाया

तेरे बाद फ़क़त तन्हाई होगी पास मेरे ये मुमकिन नहीं
मैंने महफ़िलो में तेरे किस्से सुना कर शोहरत है कमाया

कल तलक फ़क़त दिवाना था 'साबिर' तेरा ऐ जान-ए-जान 
शुक्रिया तेरी बे-रुख़ी का इस दिवाने को तुने शायर है बनाया

-साबिर बख़्शी

Sunday 7 April 2019

अधूरी_मोहब्बत 2

कोई ता-उम्र भी इंतेज़ार करने को तैयार है
किसी को खव्बो के पूरा होने का इंतेज़ार है |

कोई दिल की बातें साफ़-साफ़ कह नहीं पाता
किसी को खुले लफ़्ज़ों में इश्क़ से इंकार है |

कोई एक मुद्दत से मिलने को बे-क़रार बैठा है
किसी को मोहब्बत की बातों पे नहीं ऐतबार है |

कोई इश्क़ में बिछड़ने को गम-ए-जुदाई समझता है
किसी को दिल से याद करना भी लगता पहाड़ है |

कोई दिल-ओ-जान से चाहने लगा है तुम्हें 'साबिर'
किसी को इश्क़ और इश्क-बाज़ी लगता बेक़ार है |

  -साबिर बख़्शी 

तू कभी मेरी हो न पाई....

सुन अब तो तू हज़ार वादें कर ले  और दे-दे चाहे मुझे लाखो सफाई मगर इतना तो बता ये कैसे भूलूँगा मैं   के फितरत में तेरी शामिल है बेवफाई   मान लि...