निगाहों में थी हया,,
चैहरे पे उनके था नूर..
धड़कने जो मेरी बढ़ने लगी,,
नज़रों का उनके था कुसूर..
हाँ लब थे मेरे खामोश पर,,
दिल में उनके कुछ था ज़रूर..
वहीं थम सा गया वो लम्हा,,
हो न सके हम उनसे दूर...
ख़्वाबों में जीने लगा 'साबिर'
इश्क़ का उनके था सुरूर....!!!
चैहरे पे उनके था नूर..
धड़कने जो मेरी बढ़ने लगी,,
नज़रों का उनके था कुसूर..
हाँ लब थे मेरे खामोश पर,,
दिल में उनके कुछ था ज़रूर..
वहीं थम सा गया वो लम्हा,,
हो न सके हम उनसे दूर...
ख़्वाबों में जीने लगा 'साबिर'
इश्क़ का उनके था सुरूर....!!!
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