Saturday 29 September 2018

ख्वाहिश-ए-दिल

दिल-ए-दुनिया से दूर आज खुद से खुद को मिलवाना है,,

थोड़े आंसू आँखों में भर कर आज दिल से मुस्कुराना है,,

रसम-ओ-रिवाज के बंधन में बंधा था अब तलक मैं,,

अब ये सारे बंधन तोड़ कर आज़ादी को गले से लगाना है..

काफी बुलंद है हौसले मेरे मुश्किलों से अब क्या घबराना है..

ख्वाहिश-ए-दिल के खातिर सर-ए-राह पत्थरों से टकराना है..

लिखा न हो जिसमे मंज़िल तक़दीर की उन लकीरों को मिटाना है..

सदियों तक रखे ज़माना याद कुछ ऐसा कर के दिखाना है..

वक़्त की उंगलियां थाम कर जज़्बातों से ज़रा दूर निकल जाना है..

माना शफर काले रात सी है मगर मंज़िल सवेरे का ठिकाना है..

सजाये रखे पलकों पे लोग नज़रो में ऐसी तस्वीर बनाना है..

तलाश हो ज़माने भर को जिसकी 'साबिर' वो मंज़िल बनकर दिखाना है.. 

Tuesday 18 September 2018

शफर-ए-मंज़िल

निकले हो सफ़र में तो संभल कर चुन्ना साथी,,
खुद के साये भी यहाँ अंधेरे में साथ छोड़ देते हैं..

मंसूबे जो है तेरे कैहना न किसी से भी राहों में,,
ये राह-ए-मंज़िल है यहाँ शीशे पत्थर तोड़ देते हैं..

हज़ार बातें सुनने को मिलेगी सुन्ना तो सिर्फ खुद की,,
बातों से लोग यहाँ इरादों के ऊचे पहाड़ तोड़ देते हैं..

पूछता कौन है उनसे जो दिल में गम छिपाये बैठे है,,
मुस्कुराते चहरे को यहाँ आंसुओं में डूबता छोड़ देते है..!!
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भटकने से मिलती हैं उन्हें ही मंज़िल,,
जो हालातो से उलझना छोड़ देते हैं..

वफ़ा की उम्मीद तो हम उनसे भी करते है,,
जो सर-ए-राह-ए-इश्क़ हमें तन्हा छोड़ देते है..!!

मिलता नहीं कुछ भी जहान में उन्हें साबिर,,
जो एक बार गिर कर संभलना छोड़ देते हैं.. 

Monday 10 September 2018

शफर-दर-शफर

कुछ ख्वावों के खातिर हर
पल आँखों मे नमी सी है,,

               मौज़ूद हूँ मैं हर कोशिश मे
               पर कुछ तो कमी सी है,,

खोया हूँ कुछ इस क़दर खुद में
ही मंज़िल की आरज़ू लिए,,

                 है लब तलबगार दुआओं की पर
                 दिल मे कुछ यादें थमी सी है..

इरादें हर-बार पिघल रही है
मुश्किल-ए-धुप देख कर,,

                  कबसे बादलों की छाँव लिए
                  मुंतज़िर मंज़िल जमी सी है..

किस इंतेज़ार मे बैठा है 'साबिर'
मंज़िल की ओर बढ़ता जा,,

                     रंग बदलते वक़्त नहीं लगता वक़्त
                     को फितरत इसकी आदमी सी है.. 

Wednesday 5 September 2018

हिज्र-ए-यार

तरीक़ा-ए-मोहब्बत भी हमने इख़्तियार किया,, 
दिल-ए-मन की बातें भी हमने बार-बार किया,,

मसरूफ था वो अपनी ही ज़िन्दगी में,, 
हमने हर पहर जिसका इंतेज़ार किया..

इश्क़-ए-दुनिया से शायद वो वाक़िफ़ न था,, 
हमने बंद आँखों से जिसका ऐतबार किया..

महज़ नज़रों के ही क़रीब रहता था वो,, 
हमने करीबियों में जिसका शुमार किया.. 

इंतेहा-ए-इश्क़ पूछ बैठा मुझसे वो मेरी,, 
हमने जिसके खातिर रूह-ए-बेज़ार किया.. 

समझ न सका वो कभी मेरे खुशियों की वजह,, 
हमने सहर से जिसके दर्द-ए-गम तार-तार किया,, 

न जाने किसकी मोहब्बत छिपाये बैठा था वो दिल में,, 
हमने जिसका रुख पढ़े बिना ही शिद्दत से प्यार किया.. 

आखिर क्यों मानता नहीं दिल के वो बे'वफा है,, 
हमने ख्वाबों में भी जिसका फ़क़त इंतेज़ार किया.. 

Monday 3 September 2018

सबक़

सिख रहा हूँ रुख-ए-फरेब भी पढ़ने का हुनर,,
साथ जिसके न हो कोई उनके पास रहने का हुनर,,
लाखो लब हो जाते है खामोश हक़ के जिस बात से,,
बे-धरक बुलंद आवाज से वो बात कहने का हुनर..

सिख रहा हूँ वक़्त पे वक़्त को समझने का हुनर,,
नाम-दार हो वाल्दैन कुछ ऐसा करने का हुनर,,
नज़रो में लोगो के बुलंदी-ए-इज़्ज़-ओ-शान पाकर,,
चाँद-तारों की तरह सारे जहान मे चमकने का हुनर..

सिख रहा हूँ राह-ए-हक़ पे दर्द सहने का हुनर,,
सारी ख़ताओ से महफूज़ गुनाहो से डरने का हुनर,,
उम्मीदें तोड़ कर बैठे है जो खुद की ज़िन्दगी से,,
दिल नगर में उनके अज़्म-ओ-हौसला भरने का हुनर..

सिख रहा हूँ राह-ए-मंज़िल में संभलने का हुनर,,
गैरो के दर्द-ओ-गम में भी आंसू बहाने का हुनर,,
भले ही खताकारी क्यों नहो कोई अज़ीज़-ओ-अक़ारिब,
खिलाफ जाकर उनके गलत को गलत बोलने का हुनर.

सिख रहा हूँ लफ्ज़ो से दिल-ओ-दुनिया जितने का हुनर,,
ता-उम्र क़ाएम रहेगा इश्क़ इस यक़ीन पे मिटने का हुनर,,
दुनिया में न हो कर भी है कुछ लोग सलामत करोड़ो दिलो में,,
चलकर उनके नक़्श-ए-क़दम पर पूरी ज़िन्दगी जीने का हुनर..

सिख रहा हूँ अहल-ए-ईमान के साथ-साथ चलने का हुनर,,
भटक गए है जो राह से उनको सही राह दिखाने का हुनर,,
दुनयावी ज़रूरतों की चाह में भूल गए है जो ईमान,,
चंद दिनों की है ये दुनिया सारी उनको ये बताने का हुनर..

    

Sunday 2 September 2018

अल्फ़ाज़--ए--मोहब्बत

इश्क़ हूँ मैं वफ़ा है तू,,

मर्ज़ हूँ मैं दबा है तू,,

गुमनाम है राहें मेरी,,

मंज़िल हूँ मैं दुआ है तू..


भूक हूँ मैं ग़िज़ा है तू,,

जख्म हूँ मैं ईज़ा है तू,,

निखरता हूँ जहाँ सदा,,

फूल हूँ मैं वो रौज़ा है तू...


हवा हूँ मैं फ़ज़ा है तू,,

तक़दीर हूँ मैं जाँ-फ़िज़ा है तू,,

ज़िन्दगी से एक क़दम आगे,,

मौत हूँ मैं अज़ा है तू...


आसमान हूँ मैं जा-ब-जा है तू,,

ख्वाहिश हूँ मैं मुक़तज़ा है तू,,

हर पल दिल मेरा पाना चाहे जिसे,,

गुनाह हूँ मैं वो हसीन सज़ा है तू.

तू कभी मेरी हो न पाई....

सुन अब तो तू हज़ार वादें कर ले  और दे-दे चाहे मुझे लाखो सफाई मगर इतना तो बता ये कैसे भूलूँगा मैं   के फितरत में तेरी शामिल है बेवफाई   मान लि...