दिल-ए-दुनिया से दूर आज खुद से खुद को मिलवाना है,,
थोड़े आंसू आँखों में भर कर आज दिल से मुस्कुराना है,,
रसम-ओ-रिवाज के बंधन में बंधा था अब तलक मैं,,
अब ये सारे बंधन तोड़ कर आज़ादी को गले से लगाना है..
काफी बुलंद है हौसले मेरे मुश्किलों से अब क्या घबराना है..
ख्वाहिश-ए-दिल के खातिर सर-ए-राह पत्थरों से टकराना है..
लिखा न हो जिसमे मंज़िल तक़दीर की उन लकीरों को मिटाना है..
सदियों तक रखे ज़माना याद कुछ ऐसा कर के दिखाना है..
वक़्त की उंगलियां थाम कर जज़्बातों से ज़रा दूर निकल जाना है..
माना शफर काले रात सी है मगर मंज़िल सवेरे का ठिकाना है..
सजाये रखे पलकों पे लोग नज़रो में ऐसी तस्वीर बनाना है..
तलाश हो ज़माने भर को जिसकी 'साबिर' वो मंज़िल बनकर दिखाना है..
थोड़े आंसू आँखों में भर कर आज दिल से मुस्कुराना है,,
रसम-ओ-रिवाज के बंधन में बंधा था अब तलक मैं,,
अब ये सारे बंधन तोड़ कर आज़ादी को गले से लगाना है..
काफी बुलंद है हौसले मेरे मुश्किलों से अब क्या घबराना है..
ख्वाहिश-ए-दिल के खातिर सर-ए-राह पत्थरों से टकराना है..
लिखा न हो जिसमे मंज़िल तक़दीर की उन लकीरों को मिटाना है..
सदियों तक रखे ज़माना याद कुछ ऐसा कर के दिखाना है..
वक़्त की उंगलियां थाम कर जज़्बातों से ज़रा दूर निकल जाना है..
माना शफर काले रात सी है मगर मंज़िल सवेरे का ठिकाना है..
सजाये रखे पलकों पे लोग नज़रो में ऐसी तस्वीर बनाना है..
तलाश हो ज़माने भर को जिसकी 'साबिर' वो मंज़िल बनकर दिखाना है..