Friday 29 March 2019

तक़दीर को मंज़ूर होगी...

उदासी  की  बातें  ये मन   हर  रोज़  करता है
कभी  खामोश  कभी  कभी   ये  दिल रोता है |

पर  खुद से  कभी  मैं  ये  सवाल  नहीं  करता
अपनों  के  बदलने  का  मैं मलाल नहीं करता |

क्यों उम्मीद  लिए बैठा है दिल उस के आने का
खबर तक न हुई  जिसे तुझे से बिछड़ जाने का |

दिल    मेरा    करता   है    मुझ   से  ये  दुहाई
तक़दीर   को    मंज़ूर   होगी   शायद    जुदाई |

पर   नज़रें    चुरा    कर   उनका   यूँ   गुज़रना
मुझे   उसकी  चाहत   से   करता  है   रुसवाई |

लगता  है शायद  मिल  गया  है  उसे मुझसा कोई
या मेरे प्यार की और क़दर अब उससे होने न पाई |

 -साबिर बख़्शी 

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