सिख रहा हूँ रुख-ए-फरेब भी पढ़ने का हुनर,,
साथ जिसके न हो कोई उनके पास रहने का हुनर,,
लाखो लब हो जाते है खामोश हक़ के जिस बात से,,
बे-धरक बुलंद आवाज से वो बात कहने का हुनर..
सिख रहा हूँ वक़्त पे वक़्त को समझने का हुनर,,
नाम-दार हो वाल्दैन कुछ ऐसा करने का हुनर,,
नज़रो में लोगो के बुलंदी-ए-इज़्ज़-ओ-शान पाकर,,
चाँद-तारों की तरह सारे जहान मे चमकने का हुनर..
सिख रहा हूँ राह-ए-हक़ पे दर्द सहने का हुनर,,
सारी ख़ताओ से महफूज़ गुनाहो से डरने का हुनर,,
उम्मीदें तोड़ कर बैठे है जो खुद की ज़िन्दगी से,,
दिल नगर में उनके अज़्म-ओ-हौसला भरने का हुनर..
सिख रहा हूँ राह-ए-मंज़िल में संभलने का हुनर,,
गैरो के दर्द-ओ-गम में भी आंसू बहाने का हुनर,,
भले ही खताकारी क्यों नहो कोई अज़ीज़-ओ-अक़ारिब,
खिलाफ जाकर उनके गलत को गलत बोलने का हुनर.
सिख रहा हूँ लफ्ज़ो से दिल-ओ-दुनिया जितने का हुनर,,
ता-उम्र क़ाएम रहेगा इश्क़ इस यक़ीन पे मिटने का हुनर,,
दुनिया में न हो कर भी है कुछ लोग सलामत करोड़ो दिलो में,,
चलकर उनके नक़्श-ए-क़दम पर पूरी ज़िन्दगी जीने का हुनर..
सिख रहा हूँ अहल-ए-ईमान के साथ-साथ चलने का हुनर,,
भटक गए है जो राह से उनको सही राह दिखाने का हुनर,,
दुनयावी ज़रूरतों की चाह में भूल गए है जो ईमान,,
चंद दिनों की है ये दुनिया सारी उनको ये बताने का हुनर..
साथ जिसके न हो कोई उनके पास रहने का हुनर,,
लाखो लब हो जाते है खामोश हक़ के जिस बात से,,
बे-धरक बुलंद आवाज से वो बात कहने का हुनर..
सिख रहा हूँ वक़्त पे वक़्त को समझने का हुनर,,
नाम-दार हो वाल्दैन कुछ ऐसा करने का हुनर,,
नज़रो में लोगो के बुलंदी-ए-इज़्ज़-ओ-शान पाकर,,
चाँद-तारों की तरह सारे जहान मे चमकने का हुनर..
सिख रहा हूँ राह-ए-हक़ पे दर्द सहने का हुनर,,
सारी ख़ताओ से महफूज़ गुनाहो से डरने का हुनर,,
उम्मीदें तोड़ कर बैठे है जो खुद की ज़िन्दगी से,,
दिल नगर में उनके अज़्म-ओ-हौसला भरने का हुनर..
सिख रहा हूँ राह-ए-मंज़िल में संभलने का हुनर,,
गैरो के दर्द-ओ-गम में भी आंसू बहाने का हुनर,,
भले ही खताकारी क्यों नहो कोई अज़ीज़-ओ-अक़ारिब,
खिलाफ जाकर उनके गलत को गलत बोलने का हुनर.
सिख रहा हूँ लफ्ज़ो से दिल-ओ-दुनिया जितने का हुनर,,
ता-उम्र क़ाएम रहेगा इश्क़ इस यक़ीन पे मिटने का हुनर,,
दुनिया में न हो कर भी है कुछ लोग सलामत करोड़ो दिलो में,,
चलकर उनके नक़्श-ए-क़दम पर पूरी ज़िन्दगी जीने का हुनर..
सिख रहा हूँ अहल-ए-ईमान के साथ-साथ चलने का हुनर,,
भटक गए है जो राह से उनको सही राह दिखाने का हुनर,,
दुनयावी ज़रूरतों की चाह में भूल गए है जो ईमान,,
चंद दिनों की है ये दुनिया सारी उनको ये बताने का हुनर..
No comments:
Post a Comment
Plz comment if you like the post