घर में मेरे रहमतों की बरसात नहीं होती,,
जब से यारों , उनसे मेरी मुलाक़ात नहीं होती,,
मै तन्हा ही जागा करता हूँ अब रातों को,,
और online होकर भी उनसे मेरी बात नहीं होती,,
जब से यारों , उनसे मेरी मुलाक़ात नहीं होती...
हाँ मैंने माना की फ़िक़्र आज भी वो करता है,,
मगर ऐ दिल न जाने किस बात से वो डरता है,,
यूं तो कोई किसी को नज़र-अंदाज़ नहीं किया करता,,
याकिनन यादें मेरी अब उनके साथ नहीं होती,,
जब से यारों , उनसे मेरी मुलाक़ात नहीं होती...
और दुआएँ भी मेरी ना-मुक़म्मल है "साबिर"
जब तलक दुआओं में मेरे , उनकी बात नहीं होती,,
जब से यारों , उनसे मेरी मुलाक़ात नहीं होती....!!!
- साबिर बख़्शी
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