Sunday 7 April 2019

अधूरी_मोहब्बत 2

कोई ता-उम्र भी इंतेज़ार करने को तैयार है
किसी को खव्बो के पूरा होने का इंतेज़ार है |

कोई दिल की बातें साफ़-साफ़ कह नहीं पाता
किसी को खुले लफ़्ज़ों में इश्क़ से इंकार है |

कोई एक मुद्दत से मिलने को बे-क़रार बैठा है
किसी को मोहब्बत की बातों पे नहीं ऐतबार है |

कोई इश्क़ में बिछड़ने को गम-ए-जुदाई समझता है
किसी को दिल से याद करना भी लगता पहाड़ है |

कोई दिल-ओ-जान से चाहने लगा है तुम्हें 'साबिर'
किसी को इश्क़ और इश्क-बाज़ी लगता बेक़ार है |

  -साबिर बख़्शी 

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