Tuesday 28 August 2018

अंजाम-ए-इश्क़

लबों की मुस्कान थे जो कभी,,
वो आसुओं की वजह हो गए..

मासूमियत की मूरत थे जो कभी,,
वो ग़म-ओ-तन्हाई की सूरत हो गए..

रातों के अँधेरे में शामिल थे जो कभी,,
वो सुब्ह-सवेरा होते ही फ़ना हो गए..

तारों की बातें करते थे जो कभी,,
वो आसमान में ही कहीं खो गए..

जिनके वफ़ा की मिसाल देते थे हम कभी,,
वो तआ'रुफ़ में हमारी बे-वफ़ा हो गए..

साथ जिसके सपनो सी लगती थी दुनिया कभी,,
वो ज़िन्दगी के हक़ीक़त में कहीं खो गए..

दिल में तेरे है घर मेरा कहते थे जो कभी,,
वो वक़्त की ज़रा सी आंधी में बेघर हो गए..

आहिस्ता-आहिस्ता कहते थे कानो में जो कभी,,
वो ज़माने के शोर-ओ-गुल्ल में कहीं खो गए..

सोच-समझ कर करते थे खताये जो कभी,,
वो ज़रा सी नादानी से हमारी खफा हो गए.. 

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