माना के ज़िन्दगी कुछ नाराज़ है मुझसे मगर मैं मजबुर तो नहीं,,
फासले है क़ाएम कुछ अपनों से मगर खुद से मैं दूर तो नहीं,,
हर दिल है वाक़िफ़ मुझसे कुछ आइने जैसी है शख्शियत मेरी,,
समझ ले दुनिया हैं बुराईयाँ मुझमे बहुत मगर मैं मगरूर तो नहीं...
वक़्त बदलते ही रवाजों की तरह जो बदल जाये मैं कोई
दस्तूर तो नहीं,,
कुछ चोट गहरे है मगर अपनों को खोने से न-डरे इतना ये दिल
बहादुर तो नहीं,,
हाँ टूटकर बिखरा है ये दिल मगर खुद के जज़्बात न-समझे इतना
चूर तो नहीं,,
हर पल किसी के ख्वाहिशों में रहे 'साबिर' अभी इतना मशहूर तो नहीं...
No comments:
Post a Comment
Plz comment if you like the post